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Sunday, January 15, 2012

मैं


चंद वर्षो  पहले मैं  क्या था,
और आज मै क्या बन गया हूँ;
अनंत, खुले आसमान की तरह  था  जीवन मेरा,
आज खुद ही खुद को समेटता
एक दायरा बन गया हु मैं |

श्वेत सवच्छ एक चादर की,
 मानिंद था व्यक्तित्व मेरा;
जिससे हर अपने ने अपने पाप पोछे,
 मैली सी वो एक चादर बन गया हु मैं |

ताउम्र किये है रोशन मैंने,
दिए औरो की राह के;
घुटता है दम जिसमे मेरे ही वजूद का,
वो घना अँधेरा बन गया हु मैं |
                                                 "आनंद कुमार"  

1 comment:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया सर..

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