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Sunday, January 15, 2012

मैं


चंद वर्षो  पहले मैं  क्या था,
और आज मै क्या बन गया हूँ;
अनंत, खुले आसमान की तरह  था  जीवन मेरा,
आज खुद ही खुद को समेटता
एक दायरा बन गया हु मैं |

श्वेत सवच्छ एक चादर की,
 मानिंद था व्यक्तित्व मेरा;
जिससे हर अपने ने अपने पाप पोछे,
 मैली सी वो एक चादर बन गया हु मैं |

ताउम्र किये है रोशन मैंने,
दिए औरो की राह के;
घुटता है दम जिसमे मेरे ही वजूद का,
वो घना अँधेरा बन गया हु मैं |
                                                 "आनंद कुमार"  

Thursday, January 12, 2012

अरसा  हुआ  की  अरसे  बाद
शब्  भर  सोयी  ये  आँखे
कभी  था  तनहइयो  का  मौसम तो
 कभी  थी  खाली  खाली  आँखे
थी  कभी  रुस्वइयो  की   रुत  तो
तो  कभी  तडपाती  थी  बीती  बाते
है  ये  सज़ा  तुझे  न  रोकने  की
की  छिना  सब  मुझसे  रब  ने  मेरे
छोड़  दी  है  हिस्से  मेरे
ये सुनी  गलिया ,
बेरंग  एहसास सताता  अतीत  और  तेरी  यादे
पास  है  एक  उदास  धड़कता  तनहा  दिल और
 खाली  खाली  दो आँखे
तडपाती  है  रात  दिन  अब  तो
पल  वो  बीते  हुए  और  सारी  बीती  वो   बाते

"कुमार"

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