चंद वर्षो पहले मैं क्या था,
और आज मै क्या बन गया हूँ;
अनंत, खुले आसमान की तरह था जीवन मेरा,
आज खुद ही खुद को समेटता
एक दायरा बन गया हु मैं |
श्वेत सवच्छ एक चादर की,
मानिंद था व्यक्तित्व मेरा;
जिससे हर अपने ने अपने पाप पोछे,
मैली सी वो एक चादर बन गया हु मैं |
ताउम्र किये है रोशन मैंने,
दिए औरो की राह के;
घुटता है दम जिसमे मेरे ही वजूद का,
वो घना अँधेरा बन गया हु मैं |
"आनंद कुमार"